हो के इक रोज़ फिर बहम हम तुम बाँट लें इस जहाँ का ग़म हम तुम अब कोई दिल किसी से हो न जुदा अह्द आ कर लें कम से कम हम तुम प्यार अन्क़ा है इस ज़माने में रख रहे हैं बस इक भरम हम तुम हो ही जाएगा जान-ओ-दिल का हिसाब फिर हुए गर कभी बहम हम तुम जाते डरता है जिस तरफ़ ये जहाँ अब उठा लें उधर क़दम हम तुम मुत्तहिद हो तो ऐ चमन वालो तोड़ दें बाज़ू-ए-सितम हम तुम आओ मिल-जुल के बाँट लें यारो फ़िक्र-ए-दिल फ़िक्र-ए-बेश-ओ-कम हम तुम आज रस्म-ए-वफ़ा निभा डालो फिर कभी हों न हो बहम हम तुम आज भी वाँ गुलाब खिलते हैं कल हुए थे जहाँ बहम हम तुम