ऐ आसमाँ करम इतना ज़मीन पर कर दे समेट ले सभी तारीकियाँ सहर कर दे किसी से क़िस्सा-ए-शहर-ए-तिलिस्म कह न सकूँ इलाही बे-हिस-ओ-बे-नुत्क़-ओ-बे-बसर कर दे तमाम-उम्र हम एक दूसरे से मिल न सकें सफ़र जुदाई का इतना तवील-तर कर दे हनूज़ चीर-हरन का है सिलसिला जारी कोई कृष्ण-कनहैया को ये ख़बर कर दे ये ख़ुशबुओं की क़बा गुल की छाँव उस के लिए 'मुनीर' के लिए मख़्सूस दोपहर कर दे