ऐ हम-दमाँ भुलाओ न तुम याद-ए-रफ़्तगाँ वामाँदगाँ को है यही इरशाद-ए-रफ़्तगाँ जो ग़ुंचा ना-शगुफ़्ता ही झड़ जाए शाख़ से है इस चमन में वो दिल-ए-नाशाद-ए-रफ़्तगाँ चश्म-ओ-दिल-ओ-जिगर के लिए अश्क़-ए-दर्द-ओ-दाग़ हम पास है ये तोहफ़ा-ए-इमदाद-ए-रफ़्तगाँ इस कारवाँ-सरा में ये बाँग-ए-जरस नहीं है ये सदा-ए-नाला-ओ-फ़र्याद-ए-रफ़्तगाँ आसीदा-ओ-रविंदा से पूछा बहुत 'मुहिब' दरयाफ़्त पर न कुछ हुई रूदाद-ए-रफ़्तगाँ