ऐ कहकशाँ गुज़र के तिरी रहगुज़र से हम आगे बढ़ेंगे और मक़ाम-ए-क़मर से हम अज़्म-ए-बुलंद हौसला-ए-मुस्तक़िल लिए गुज़रे हर एक मरहला-ए-सख़्त-तर से हम देखा तो है ज़मीं से तुझे गुम्बद-ए-फ़लक देखेंगे अब ज़मीं को तिरे बाम-ओ-दर से हम जब से हुई है आँख शब-ए-ग़म से आश्ना ना-आश्ना हैं लज़्ज़त-ए-ख़्वाब-ए-सहर से हम दिल इज़तिराब-ओ-दर्द से महरूम हो गया बाज़ आए तेरे लुत्फ़-ओ-करम की नज़र से हम हर ताज़ा ग़म के वास्ते जा-ए-क़याम है तंग आ गए हैं वुसअत-ए-क़ल्ब-ओ-जिगर से हम तर्ग़ीब दे न ऐ दिल-ए-फुर्क़त-नसीब तू वाक़िफ़ हैं ख़ूब आह-ओ-फ़ुग़ाँ के असर से हम 'फ़ाज़िल' हमारा हाल भी होता तिरी मिसाल रहते न होशियार अगर राहबर से हम