ऐ सनम तुझ को हम भुला न सके दिल से दाग़-ए-वफ़ा मिटा न सके अल्लाह अल्लाह उस आस्ताँ की कशिश सर झुकाया तो सर उठा न सके मिट गए शौक़-ए-दीद में लेकिन आप जल्वा हमें दिखा न सके तेरी चाहत में दर्द वो पाया हम ज़माने में चैन पा न सके दे के दिल तुम को जान भी दे दी फिर भी अपना तुम्हें बना न सके जब से निस्बत हुई तिरे दर से हम किसी दर पे सर झुका न सके इश्क़ में ये अजब तमाशा है उन को पाया तो ख़ुद को पा न सके ऐसी बदली हवा ज़माने की ज़ख़्म सीने के मुस्कुरा न सके तुम 'फ़ना' की लहद पे बा'द-ए-फ़ना आ के दो फूल भी चढ़ा न सके