कुछ तो ऐ यार इलाज-ए-ग़म-ए-तन्हाई हो बात इतनी भी न बढ़ जाए कि रुस्वाई हो डूबने वाले तो आँखों से भी कब निकले हैं डूबने के लिए लाज़िम नहीं गहराई हो जिस ने भी मुझ को तमाशा सा बना रक्खा है अब ज़रूरी है वही शख़्स तमाशाई हो मैं मोहब्बत में लुटा बैठा हूँ दिल की दुनिया काम ये ऐसा भी कब है कि पज़ीराई हो अजनबी तुम से कोई बात जो कर ली मैं ने लोग कहने लगे हरजाई हो हरजाई हो कोई अंजान न हो शहर-ए-मोहब्बत का मकीं काश हर दिल की हर इक दिल से शनासाई हो मैं मोहब्बत को छुपाता रहा लेकिन बे-सूद बात छुपती है कहाँ जिस में कि सच्चाई हो आज तो बज़्म में हर आँख थी पुर-नम जैसे दास्ताँ मेरी किसी ने यहाँ दोहराई हो मैं तुझे जीत भी तोहफ़े में नहीं दे सकता चाहता ये भी नहीं हूँ तिरी पस्पाई हो अब के सावन तो बरसता हुआ यूँ लगता है आसमाँ पर भी तिरे ग़म की घटा छाई हो यूँ गुज़र जाता है 'इमरान' तिरे कूचे से तेरा वाक़िफ़ न हो जैसे कोई सौदाई हो