मिला है कैसा तिरे ए'तिबार का मौसम कि जैसे चारों तरफ़ है बहार का मौसम उतरती जाती हैं खेतों में याद की चिड़ियाँ निखर रहा है मिरे सब्ज़ा-ज़ार का मौसम कुछ ऐसे मौज-ए-सबा ने छुआ है गालों को कि दिल में खिलने लगा बर्ग-ओ-बार का मौसम नई रुतों में मलेंगे उसी जगह हम तुम सँभाल रखना मिरे यार प्यार का मौसम निखरती धूप थी उजले थे मेरे शाम-ओ-सहर कहाँ से आया है गर्द-ओ-ग़ुबार का मौसम अभी तो उजला है आँगन गुलाब ताज़ा हैं गुज़र ही जाए न क़ौल-ओ-क़रार का मौसम कुछ और कोंपलें फूटेंगी फूल आएँगे नया नया है अभी शाख़-सार का मौसम हर एक शाख़ पे चाँदी है खिल रही एहसान गुलों पे आया है सोला-सिंघार का मौसम