वफ़ा कम है नज़र आती बहुत है बड़े शहरों में दानाई बहुत है हमारे पाँव में पत्थर बंधे हैं तिरी आँखों में गहराई बहुत है बनाने को हिमाला नफ़रतों के ग़लत-फ़हमी की इक राई बहुत है नज़र में किस की है पाकीज़गी अब कि इस तालाब में काई बहुत है हमारा साथ रहना भी है मुश्किल बिछड़ने में भी रुस्वाई बहुत है सभी की ज़िंदगी है अपनी अपनी भरे घर में भी तन्हाई बहुत है अदब में ज़िंदगी पाने को 'अल्वी' फ़क़त लहजे में सच्चाई बहुत है