इक और ज़िंदगी है सुना है क़ज़ा के बाद या'नी सज़ा है और अभी इस सज़ा के बाद क्या जानिए कहाँ मैं खड़ा चीख़ता रहा उभरी न बाज़गश्त भी मेरी सदा के बाद लगता है अब ये ज़ोर-ए-तलातुम को देख कर जैसे न हो ख़ुदा भी मेरा ना-ख़ुदा के बाद बदलो जो तुम निगाह तो ये भी रहे ख़याल आईना टूट जाए है अक्स-ए-जफ़ा के बाद 'असरार' आदमी हूँ कोई देवता नहीं मंज़िल भी चाहता हूँ मैं राह-ए-वफ़ा के बाद