वो एक शाम जो परदेस में उतरती है तुम्हें ख़बर ही नहीं दिल पे क्या गुज़रती है तुम्हें ख़बर ही नहीं मेरे दिन गुज़रने की तुम्हें ख़बर ही नहीं रात कैसे कटती है अजब ज़मीन पे उतरा हूँ इस के रंग अजीब परे धकेलती है पाँव भी पकडती है ये क्या हुआ कि किसी और घर के आँगन में तिरे जमाल की बारिश बरसती रहती है हवा के दोष पे उड़ता मैं जा रहा हूँ 'अता' ज़मीन पाँव से मेरे सरकती जाती है