इक बार देख लूँ तो सताता है आइना बीते दिनों की याद दिलाता है आइना बद-सूरती पे अपनी तरस क्यों न आएगा जब बार बार कोई दिखाता है आइना हर कोई इस हुनर से तो वाक़िफ़ नहीं मगर बद-सूरतों का बोझ उठाता है आइना इंसाँ की सोहबतों ने इसे भी सिखा दिया चेहरों पे ख़ूब चेहरे चढ़ाता है आइना जो दाग़ मेरे चेहरे पे थे ही नहीं कभी अक्सर वो दाग़ मुझ को दिखाता है आइना सच पूछिए तो चेहरों पे लिक्खा नहीं है कुछ अपने ही दिल की बात बताता है आइना उस वक़्त काएनात का आलम न पूछिए जब पत्थरों से आँख मिलाता है आइना बातिन की कुछ ख़बर है न ज़ाहिर पे कुछ अयाँ कुछ राज़ इस तरह भी छुपाता है आइना महफ़िल में सब से आँखें चुराता है गो 'ज़िया' तन्हाइयों में साथ निभाता है आइना