वो इक शजर जिसे अज्दाद ने लगाया था उसी को काट दिया जिस का सर पे साया था वो बात बात में फिर आज मुझ से रूठ गया बड़े ही प्यार से जिस को मना के लाया था वो हम-नवा था हमारा वो कोई ग़ैर न था जो घर में आग हमारे लगाने आया था वही तो आज हमारे पड़ा हुआ है गले बड़े ख़ुलूस से जिस को गले लगाया था हमारे शे'र को अक्सर वो पढ़ता रहता है जो बे-ख़ुदी में कभी हम ने गुनगुनाया था हमें वो याद है अब तक सबक़ मोहब्बत का कि हर्फ़ हर्फ़ जिसे आप ने पढ़ाया था अगर क़ुसूर नहीं था कोई हवाओं का तो फिर चराग़ को किस ने मिरे बुझाया था वो आज हाथ से मेरे निकल गया 'शादाँ' कि जिस को मैं ने मशक़्क़त के बा'द पाया था