एक बे-नाम सी चाहत के सिवा कुछ भी नहीं ज़िंदगी तेरी मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं हुस्न मग़रूर सही शान-ए-ख़ुद-आराई पर इश्क़ के पास तो हैरत के सिवा कुछ भी नहीं रुख़ बदलते हुए हालात से रु-गर्दानी एक नाकाम बग़ावत के सिवा कुछ भी नहीं हर-नफ़स एक नई टीस लिए आता है ज़िंदगी जब्र-ए-मशीयत के सिवा कुछ भी नहीं इश्क़ की ख़ू-ए-वफ़ा हुस्न का आईन-ए-सितम अब तो फ़र्सूदा रिवायत के सिवा कुछ भी नहीं फिर उठी हैं मिरी जानिब वो निगाहें तो 'ज़की' दिल में अब सोज़-ए-मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं