एक ही लफ़्ज़ में दफ़्तर लिखना ख़त उसे सोच समझ कर लिखना जब चली तेज़ हवा की तलवार कितने पंछी हुए बे-पर लिखना चाँदनी किस का मुक़द्दर ठहरी किस का तारीक रहा घर लिखना झील से उभरी थी जब क़ौस-ए-क़ुज़ह वो सुलगता हुआ मंज़र लिखना नाम भी उस का जो लिखना पड़ जाए रविश-ए-आम से हट कर लिखना ख़ौफ़ करना न हवा का हरगिज़ रेग-ए-सहरा पे समुंदर लिखना है अजब कर्ब क़लम में ऐ 'ताज' जो न लिखना हो वो अक्सर लिखना