ग़म-ए-हयात की ये दिलकशी ग़नीमत है मेरे क़रीब न आई ख़ुशी ग़नीमत है वो ज़िंदगी जो तेरी याद की असीर रही किसी तरह से गुज़र ही गई ग़नीमत है हयात मा'रका-ए-ग़म से कम नहीं ऐ दोस्त ये चंद लम्हों की फ़ुर्सत बड़ी ग़नीमत है ख़ुदा का शुक्र है तौहीन-ए-इल्तिजा न हुई किसी ने बात मिरी मान ली ग़नीमत है तअ'ल्लुक़ात बहर-हाल बरक़रार तो हैं जफ़ा-शिआ'र की ये दुश्मनी ग़नीमत है धड़कते दिल को कहाँ तक सँभाल सकते थे हुजूम-ए-ग़म में सहर हो गई ग़नीमत है कोई अनीस-ए-ग़म-ए-दिल नहीं रहा ऐ 'ताज' मेरी रफ़ीक़ मिरी शाइरी ग़नीमत है