एक रुख़ सौ नक़ाब है दुनिया और फिर बे-हिजाब है दुनिया ख़ूबसूरत हनूज़ बे-ख़ुश्बू काग़ज़ों की गुलाब है दुनिया कोई ता'बीर क्या करे उस की एक गूँगे का ख़्वाब है दुनिया लफ़्ज़-ओ-मा'नी की ताज़गी मत पूछ गो पुरानी किताब है दुनिया हम भी ऐसे कहाँ के अच्छे हैं क्या हुआ गर ख़राब है दुनिया सर-बसर ऐश भी अज़िय्यत भी ख़ुल्द-ए-दोज़ख़-मआ'ब है दुनिया आओ 'ज़ेबा' ये तज्ज़िया तो करें हम हैं ख़ुद या ख़राब है दुनिया