इक समुंदर है मेरी आँखों में ग़म का मंज़र है मेरी आँखों में तुम सितारों की बात करते हो सारा अम्बर है मेरी आँखों में जिस ने रंज-ओ-अलम दिए हैं मुझे वो सितमगर है मेरी आँखों में यूँ तो परदेस में तरक़्क़ी है पर मिरा घर है मेरी आँखों में मेरे ख़्वाबों का क़त्ल करने को कोई ख़ंजर है मेरी आँखों में तू किसी और का न हो जाए बस यही डर है मेरी आँखों में तुम को दिल में दिखाई दे या न दे ज़ख़्म अंदर है मेरी आँखों में सच तो ये है के आज भी 'रौनक़' इक क़लंदर है मेरी आँखों में