जब समुंदर मिरी आँखों में सिमट जाता है तिश्नगी तेरा भरम और भी घट जाता है जब भी सच के लिए आवाज़ उठाता हूँ मैं मेरी गर्दन से कोई साँप लिपट जाता है कोशिशें बरसों बरस जीने की करता है मगर आदमी वक़्त से पहले ही निबट जाता है ऊँची आवाज़ में औलाद के चिल्लाने पर बूढ़े माँ-बाप का दिल रंज से फट जाता है हम हैं इंसान जो नफ़रत की ज़बाँ बोलते हैं एक तोता भी सबक़ प्यार का रट जाता है एक हम हैं के जो हर बात पे करते हैं यक़ीं एक वो है कि जो वा'दे से पलट जाता है जिस तरह सोते हुए रात गुज़र जाती है ठीक वैसे ही बुरा वक़्त भी कट जाता है