हंगामा है न फ़ित्ना-ए-दौराँ है आज-कल हर सम्त शम-ए-अम्न फ़रोज़ाँ है आज-कल सुनने में आ रहे हैं मसर्रत के वाक़िआत जम्हूरियत का हुस्न नुमायाँ है आज-कल जो ग़ुंचा है वो अपने तबस्सुम में मस्त है जो फूल है बहार-ब-दामाँ है आज-कल नज़रों में इज़्तिराब न दिल में कोई खटक काँटों से पाक सेहन-ए-गुलिस्ताँ है आज-कल मुद्दत के बा'द आया है आज़ादियों का लुत्फ़ अफ़्सुर्दा है न कोई परेशाँ है आज-कल अब अहल-ए-कारवाँ का भटकना बहाल है ख़ुद मीर-ए-कारवाँ ही निगहबाँ है आज-कल जिस अंजुमन में जाते न थे पहले अहल-ए-दिल 'शेरी' उस अंजुमन में ग़ज़ल-ख़्वाँ है आज-कल