इक वही ख़ुश-जमाल थोड़ी है हुस्न वालों का काल थोड़ी है तज़्किरा बे-वफ़ा का हो रहा है ये तुम्हारी मिसाल थोड़ी है ये जो हिजरत है आरज़ी है जनाब मुस्तक़िल इंतिक़ाल थोड़ी है दर्द-ए-हिज्राँ ने ये किया साबित हर किसी को ज़वाल थोड़ी है क्यूँ तुझे शामिल-ए-दरूद करूँ तो मोहम्मद की आल थोड़ी है तुझे अपना समझ के माँगा है हर किसी से सवाल थोड़ी है क्या ज़रूरी है सब ज़बाँ से कहूँ चश्म-ए-पुर-नम का हाल थोड़ी है ये मोहब्बत रहेगी महशर तक एक शब का विसाल थोड़ी है आँख भर के वो देखता है मुझे इस का मतलब विसाल थोड़ी है जाओ नख़वत तुम्हें मुबारक हो हुस्न वालों का काल थोड़ी है हिज्र का मशवरा मुफ़ीद होगा दोस्त है बद-सिगाल थोड़ी है बोसे अब लेना छोड़िए साहब गुल है ये उस का गाल थोड़ी है उन की नज़र-ए-करम में शामिल हूँ इस में मेरा कमाल थोड़ी है उसे अंधा भी देख सकता है ये बदर है हिलाल थोड़ी है ख़ाक मिट्टी तले दबाई गई रूह का इंतिक़ाल थोड़ी है ख़्वाब चुभते रहे हैं आँखों में रंग वैसे ही लाल थोड़ी है फ़िक्र लाहिक़ है रोज़ी-रोटी की मुझ को तेरा ख़याल थोड़ी है साँस ऊँचा लूँ मैं मदीने में मेरी इतनी मजाल थोड़ी है उस से बचना मुहाल है यारो मेरे दुश्मन की चाल थोड़ी है दिल को ठोकर ज़रा सी लग गई है इस का मतलब ज़वाल थोड़ी है छीन सकता नहीं कोई मुझ से इल्म है ये मनाल थोड़ी है सारे उश्शाक़ शाद फिरते हैं ये बरहमन का साल थोड़ी है जब भी चाहो उठा दो 'ज़मज़म' को ये फ़क़ीरों का बाल थोड़ी है