इक ज़रा सी दिल की हसरत तुम से उल्फ़त और तुम बस है इतनी सी ज़रूरत थोड़ी राहत और तुम मुद्दतों से मुख़्तलिफ़ हैं मेरी क़िस्मत और तुम क्यों मुक़द्दर में नहीं तुम से मोहब्बत और तुम हो बहुत मसरूफ़ तुम या है कोई नाराज़गी साथ में मिलते नहीं अब थोड़ी फ़ुर्सत और तुम तुम बिछड़ कर भी न मुझ से हो सके पल-भर जुदा मुझ में बाक़ी है तुम्हारी हर इक आदत और तुम अपने आँगन से नहीं कुछ दूरियों से ही सही है मुझे हासिल तुम्हारे गुल की निकहत और तुम हूँ बड़ी मुश्किल में अपने दिल-मकाँ को देख कर साथ कैसे रह सकेंगे इस में वहदत और तुम मुनहसिर तुम पर है मेरे दिल की हर इक आरज़ू एक मिन्नत एक जन्नत एक फ़रहत और तुम