जिस्म से हो के पार आए हम रूह बिस्तर पे हार आए हम ले के दिल में ग़ुबार आए हम देख पर्वरदिगार आए हम उन से मिलने की बे-क़रारी थी मिल के भी बे-क़रार आए हम इक भरोसा दिलाने की ख़ातिर शर्म अपनी उतार आए हम आख़िरी बार मिल के आए तो उस को दिल से उतार आए हम अब के हम लौट कर कहाँ जाएँ घर से हो के फ़रार आए हम