फ़लक में बीज बोता हूँ मगर उगता नहीं कुछ भी मैं जैसा सोचता हूँ उस तरह होता नहीं कुछ भी मैं आँखें बंद कर के ज़िंदगी अपनी गुज़ारूँगा बहुत कुछ सामने मौजूद है अच्छा नहीं कुछ भी मैं दिन भर क्या किया क्यों याद रक्खूँ उस से क्या हासिल मैं कल क्या करने वाला हूँ अभी सोचा नहीं कुछ भी सियासत फ़लसफ़े तंज़ीम वा'दे खोखले सारे यहाँ क्या कुछ हुआ है और फिर होगा नहीं कुछ भी दिखाता है सभी ऐब-ओ-हुनर और भूल जाता है इक आईना है जो दिल में कभी रखता नहीं कुछ भी यही 'किशवर' है बस उम्र-ए-ख़िज़र का मुस्तहिक़ या-रब तिरी दुनिया में इस ने आज तक देखा नहीं कुछ भी