फ़ना हुआ कोई यहाँ ख़िताब कोई ले गया इबादतें किसी की थीं सवाब कोई ले गया वफ़ा के जाम के लिए सजाए हम ने मय-कदे मगर लबों से छीन कर शराब कोई ले गया थी प्यार की फ़ज़ा मगर ज़बाँ खुली न लब हिले सितम ये उस पे आँख से भी आब कोई ले गया ये ख़ुशबुएँ बिखेर के मिला ही क्या बहार को लरज़ती शाख़ रह गई गुलाब कोई ले गया फ़साद की हक़ीक़तें लिखी थीं जिस में हर्फ़ हर्फ़ वरक़ वरक़ मसल के वो किताब कोई ले गया सुकून इस तरह लुटा दिल-ए-वफ़ा-शिआ'र का जो उम्र-भर सजाए थे वो ख़्वाब कोई ले गया फ़रेब-ए-पाक-दामनी क़दम क़दम पे लग़्ज़िशें वो 'आमिर' आज उम्र का हिसाब कोई ले गया