गुज़रूँगा मैं जिधर से बक़ा छोड़ जाऊँगा बे-हर्फ़ कर के लफ़्ज़-ए-फ़ना छोड़ जाऊँगा दौर-ए-ख़िज़ाँ में ख़ार भी महकेंगे मिस्ल-ए-गुल मैं गुल्सिताँ में ऐसी फ़ज़ा छोड़ जाऊँगा तुम लफ़्ज़ लफ़्ज़ करना तिलावत मिरी हयात मैं इक़्तिबास-ए-अज़्म खुला छोड़ जाऊँगा जिस पर हज़ार मय-कदे हो जाएँ ख़ुद निसार आँखों में तेरी ऐसा नशा छोड़ जाऊँगा 'आमिर' सिला मिले न मिले प्यार का मुझे लेकिन लबों पे दाद-ए-वफ़ा छोड़ जाऊँगा