फ़क़त बात दिल की सुनाई थी तुम को तुम्हारी शिकायत लगाई थी तुम को ज़माना हमें दोष देता है क्यूँकर यही बात हम ने बताई थी तुम को मोहब्बत का झांसा था सब खेल तेरा जो गुज़री थी दिल पर सुनाई थी तुम को भला कैसे ज़िंदा मैं तुम को मिलूँगा पड़ी राख अपनी दिखाई थी तुम को तिरी दस्तरस में न आऊँगा यारा यही बात मैं नै रटाई थी तुम को न तुम से हुई पार नज़रों की दहलीज़ मिली दिल तलक भी रसाई थी तुम को क़बीले की इज़्ज़त बचा न सके तुम क़सम याद मैं ने दिलाई थी तुम को यक़ीं था असर तेरे दिल पर न होगा मगर जूठी चाय पिलाई थी तुम को तू जिस बात पर है ना 'नासिर' से नालाँ कभी ये अदा उस की भाई थी तुम को