इस का एहसास नहीं वक़्त के तेवर बदले रंज तो ये है कि दिन-रात के मंज़र बदले मेरा मस्लक नज़र-अंदाज़ किए जाने पर किस के दिन फिर गए किस किस के मुक़द्दर बदले मेरी मस्ताना-रवी फिर भी मयस्सर न हुई यार लोगों ने कई शीशा-ओ-साग़र बदले न बना पर न बना मेरा सा पैकर न बना बुत-तराशों ने कई क़िस्म के पत्थर बदले तुम 'ज़िया' शूमी-ए-तक़दीर को रोते क्यों हो इंक़लाब आए न तक़दीर का चक्कर बदले