फ़र्क़ क्या है ये मन-ओ-तू के बीच एक से दूसरी ख़ुशबू के बीच हम चले भी कि वहीं पर हैं खड़े महमिल-ओ-नाक़ा के जादू के बीच फ़ासला कितना बढ़ा मुड़ के तो देख मुंसिफ़ी और तराज़ू के बीच इक बड़ा फ़र्क़ है मा'सूमी का दश्त और शहर के आहू के बीच लोग जीने पे न मामूर थे कब ख़ंजर-ओ-महर हलाकू के बीच लोग किस इश्क़ के जूया हुए हैं रक़्स-ओ-पाज़ेब से घुँगरू के बीच