फ़साद निय्यत में जब नहीं है तो फिर मुझे ख़तरा क्यों कहीं है बहुत मुकल्लफ़ हैं ये इशारे कि इस से बचिए और इस से बचिए बरस रही हो जो चीज़ हम पर ख़याल उस का न आए क्यूँकर शु'ऊर हो किस तरह मो'अत्तल कहाँ ये मुमकिन कि हिस से बचिए वो इक ज़माने से बद-गुमाँ हैं ख़बर नहीं क्या असर कहाँ हैं समझ में आता नहीं कुछ 'अकबर' कि किस से अब मिलिए किस से बचिए