फ़िक्र-ए-मंज़िल हो गई उन का गुज़रना देख कर ज़िंदा-दिल मैं हो गया औरों का मरना देख कर आसमाँ की छत बहुत नीची सर-ए-नख़्वत को है किब्र से कह दो कि दुनिया में उभरना देख कर ज़ीस्त बे-वक़'अत हुई है मेरे शौक़-ए-ज़ीस्त से मौत हैराँ है मिरा मरने से डरना देख कर