फ़साना जौर-ए-बेहद का कभी दोहरा नहीं सकता करम हर्फ़-ए-शिकायत बन के लब पर आ नहीं सकता मिरे सोज़-ए-निहाँ का राज़ कोई पा नहीं सकता जो दिल महसूस करता है ज़बाँ पर आ नहीं सकता अगर चाहूँ तो जल जाए इशारे में नक़ाब उन का मगर मैं आतिश-ए-दीदार को भड़का नहीं सकता मिरी फ़रियाद की हर लय ब-उन्वान-ए-तरन्नुम है न समझे कोई मैं इशरत का नग़्मा गा नहीं सकता अगर है शौक़-ए-नज़्ज़ारा मज़ाक़-ए-दीद पैदा कर बग़ैर-ए-शौक़-ए-बेहद वो नज़र में आ नहीं सकता समझ लें बहर-ए-तूफ़ाँ-ख़ेज़ की ना-आश्ना मौजें दिल-ए-साहिल-तलब को अब डुबोया जा नहीं सकता हँसे कोई कोई रोए ये अपनी अपनी फ़ितरत है मगर 'माहिर' का दिल ग़म से कभी घबरा नहीं सकता