गुलशन-ए-इल्म की निकहत हूँ गुल-ए-तर मैं हूँ क़द्र-दाँ जिस के सभी हैं वो सुख़नवर मैं हूँ इन्क़िलाबात हूँ तहरीक हूँ महशर मैं हूँ जिस में आफ़ाक़ समा जाएँ वो चादर मैं हूँ सिर्फ़ इक शो'ला मिज़ाजी है मिरी शान-ए-वजूद क़तरा-ए-अब्र हूँ दरिया हूँ समुंदर मैं हूँ रोज़-ए-अव्वल से हुआ है मुझे वहदत का शुऊ'र जो परस्तार-ए-हक़ीक़त है वो शंकर मैं हूँ अपनी फ़ितरत से दहकती हुई धूपें पी कर सर्द पानी जो उगल देता है कंकर मैं हूँ मुझ से ऐवान-ए-इमारत की चुनी हर दीवार रेत की शक्ल में रौंदा हुआ पत्थर मैं हूँ जोश-ए-दरिया मिरी ख़ामोश रवानी को समझ रह गया था जो किसी धारे से कट कर मैं हूँ अपनी तख़्लीक़ पे है नाज़ बजा है 'माहिर' चश्म-ए-तन्क़ीद-ए-निगाराँ में हूँ बरतर मैं हूँ