फ़िक्र-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ में रहता हूँ मैं भी इस ख़ाक-दाँ में रहता हूँ नीलगूँ आसमान के नीचे ख़ेमा-ए-जिस्म-ओ-जाँ में रहता हूँ मैं हूँ आज़ाद कब ज़माने में क़ैद-ए-वहम-ओ-गुमाँ में रहता हूँ मैं मोहब्बत की रौशनी बन कर वक़्त की कहकशाँ में रहता हूँ मैं बहारों के रंग में ढल कर मंज़र-ए-बोस्ताँ में रहता हूँ जाने क्या बात है कि मैं तन्हा महफ़िल-ए-दोस्ताँ में रहता हूँ अपने बूढे वजूद के अंदर इक शिकस्ता मकाँ में रहता हूँ फ़िक्र-ए-इतलाफ़-ए-ज़िंदगी कैसा मैं अजल की अमाँ में रहता हूँ मैं बगूलों के दरमियाँ 'शाहिद' दश्त-ए-अस्र-ए-रवाँ में रहता हूँ