फिर बहाना कोई बनाया गया शाख़ से आशियाँ गिराया गया अपने आँगन में रौशनी के लिए ज़र्द पत्तों को आज़माया गया क़ुर्बत-ए-आफ़्ताब बढ़ती गई जल उठे पाँव सर से साया गया दर-ब-दर कर दिया परिंदों को काट कर पेड़ घर बनाया गया ख़ाक ने ख़ाक तक पहुँचना था उम्र भर रास्ता दिखाया गया ज़िंदगी कब गुज़रने वाली थी नक़्श दीवार पर बनाया गया रौशनी फूटने लगी 'आसिम' शिद्दत-ए-ग़म में गुनगुनाया गया