मिरी चाहतों का सिला दे रहे हो यूँ लगता है जैसे सज़ा दे रहे हो न साहिल न साहिल के आसार तक हैं दिलासे अबस नाख़ुदा दे रहे हो अदाओं इशारों से लगता है जैसे कोई ज़ख़्म फिर से नया दे रहे हो यहाँ हर कोई ख़ुद में डूबा है गम है दिवाने किसे तुम सदा दे रहे हो मिरी जान माँगा था कुछ और मैं ने ग़म-ए-हिज्र फिर से ये क्या दे रहे हो मोहब्बत सिखा दी तुम्हें जिस ने उस को वफ़ा के बजाए दग़ा दे रहे हो बड़ी मुद्दतों बा'द शो'ले बुझे हैं तुम इस आग को फिर हवा दे रहे हो कहीं वो हवाओं का हामी न निकले जिसे अपना 'फ़रहत' दिया दे रहे हो