फिर उठी चश्म-ए-फ़ुसूँ-साज़ ख़ुदा ख़ैर करे दिल है फिर ग़र्क़-ए-मय-ए-नाज़ ख़ुदा ख़ैर करे बर्क़ चमकी है ब-सद-नाज़ ख़ुदा ख़ैर करे फिर नशेमन का है आग़ाज़ ख़ुदा ख़ैर करे दिल के बस में था छुपाया बहुत उस ने लेकिन दस्त-ए-मिज़्गाँ में है अब राज़ ख़ुदा ख़ैर करे कोई आता है पस-ए-क़ाफ़िला-ए-फ़स्ल-ए-बहार फिर है ज़ंजीर की आवाज़ ख़ुदा ख़ैर करे बर्क़ की ज़द में गुलिस्ताँ तो नहीं है लेकिन गुल से है आग की परवाज़ ख़ुदा ख़ैर करे दिल की धड़कन थे जो कल आज वही दीवाने हो गए दूर की आवाज़ ख़ुदा ख़ैर करे जानते हैं कि बदलती नहीं तक़दीर 'नसीब' वक़्त और महरम-ओ-हम-राज़ ख़ुदा ख़ैर करे