फिरी सी देखता हूँ इस चमन की कुछ हवा बुलबुल तुझे फ़ुर्सत है जब तक आशियाँ याँ से उठा बुलबुल तू आशिक़ है वफ़ा तेरा हुनर है इश्क़ में वर्ना मिरा गुल बे-वफ़ा है क्या इसे क़द्र-ए-वफ़ा बुलबुल दर-ए-रहमत ख़ुदा का बाज़ है दिल अपना ताज़ा रख क़फ़स में हसरत-ए-गुल से मत इतना फड़फड़ा बुलबुल तुझे ऐ बाग़बाँ इक मुश्त-ए-पर से क्या अदावत है बहार आख़िर है दो दिन में कुजा गुल फिर कुजा बुलबुल ख़िज़ान-ए-शूम ये गुलशन के हक़ में क्या क़यामत है कि इस के आते ही बे-बर्ग हो गुल बे-नवा बुलबुल दिल आसूदा न पाया क्या ख़िज़ाँ और क्या बहार इस को मोहब्बत में रखे है तुर्फ़ा दर्द-ए-बे-दवा बुलबुल भरा है नेमत-ए-अलवाँ से गुल का ख़्वान गो 'हसरत' करे हर सुब्ह उठ कर ख़ून-ए-दिल से नाश्ता बुलबुल