फूल हो कर फूल को क्या चाहना जब ये बे-आँगन था जब था चाहना ज़ख़्म सारे ही हैं अपने जिस्म-ज़ाद किस सबब उन का तमाशा चाहना फिर से हो तज्दीद-ए-ख़ुशबू सोचिए चाहना और वो भी अपना चाहना एक मुश्किल राज़दारी चाहिए एक मुश्किल चाहतों का चाहना दस्त-गीरी ऐ नम आँखों वाली सुब्ह चाहना क्या चाहना क्या चाहना चाँद की आयत समुंदर पर पढ़ो चाहना उस को तो ऐसा चाहना हस्ब-ज़ा 'मंज़ूर' मेरा नाम है काम मेरा सब का अच्छा चाहना