फूल को ख़ार लिखें ख़ार को शबनम लिक्खें ज़ख़्म गहरा हो तो आसूदा-ए-मरहम लिक्खें नर्म अल्फ़ाज़ ही तहरीर के शाइंदा हैं ये मुनासिब है कि काग़ज़ को भी रेशम लिक्खें एक इक हर्फ़ से ख़ुशबू-ए-बहाराँ जागे सादे काग़ज़ पे कभी फूल अगर हम लिक्खें ग़म को रंगीन बना देंगे मोहब्बत के ख़ुतूत आप कुछ हम को लिखें आप को कुछ हम लिक्खें हुस्न-ए-इज्माल में तफ़्सीर के पहलू हैं बहुत कुछ ज़ियादा भी अगर लिखना हो तो कम लिखें