ग़म दे के ग़म-गुसार हुए भी तो क्या हुए तड़पा के बे-क़रार हुए भी तो क्या हुए करना था दाग़ बन के किसी दिल में रौशनी शम्अ'-ए-सर-ए-मज़ार हुए भी तो क्या हुए होना था आप अपने चमन में शगूफ़ा-कार शर्मिंदा-ए-बहार हुए भी तो क्या हुए मिटते किसी के इश्क़ में ऐ दिल तो बात थी बर्बाद-ए-रोज़गार हुए भी तो क्या हुए दिल भी है पाश-पाश सफ़ीना भी पाश-पाश तूफ़ान-ए-ग़म से पार हुए भी तो क्या हुए वीरानियाँ दयार-ए-मोहब्बत में हैं वही तुम ग़ैरत-ए-बहार हुए भी तो क्या हुए हैं सर-निगूँ हनूज़ तुम्हारे नियाज़-मंद तुम अहल-ए-इख़्तियार हुए भी तो क्या हुए सीने में दिल के नाम से अब ख़ाक भी नहीं अब आप शर्मसार हुए भी तो क्या हुए हँस हँस के झेलना है हर उफ़्ताद-ए-शौक़ को रो रो के कामगार हुए भी तो क्या हुए है सामना फ़रेब-ए-मोहब्बत का हर-नफ़स इक उन से होशियार हुए भी तो क्या हुए बरहम अगर सुकून-ए-दो-आलम न हो सका यूँ हुस्न पर निसार हुए भी तो क्या हुए है ज़िंदगी 'अदीब' की अब भी हिजाब में हम उस के राज़-दार हुए भी तो क्या हुए