गए वो दिन कि कोई ग़म-शनास आएगा जो आ गया भी तो क्या दिल को रास आएगा चलो तो राह-ए-मोहब्बत में बे-तलब हो कर मज़ा सफ़र का तो बिन-भूक-प्यास आएगा मदद को जिस की खड़ा हूँ मैं सर-निगूँ हो कर बड़े ग़ुरूर में वो ना-सिपास आएगा वो साफ़-गो है मगर बात का हुनर सीखे बदन हसीं है तो क्या बे-लिबास आएगा अजब नहीं कि तिरे दर पे एक रोज़ ये शख़्स हर एक सम्त से हो कर उदास आएगा मैं दूरियों का नया बाब खोल रखता हूँ अभी वो शख़्स मिरे और पास आएगा