ग़ैर से रस्म-ओ-राह क्यों मैं ने सुना दिया कि यूँ उस ने पकड़ के हाथ से मुझ को उठा दिया कि यूँ मुझ को निकम्मा कह दिया मैं ने कहा भला ये क्यों आइना ले के हाथ में उस ने दिखा दिया कि यूँ मुर्दा दिलों में ज़िंदगी आती है कैसे औद कर रुख़ से नक़ाब-ए-ज़ुल्फ़ को उस ने हटा दिया कि यूँ प्यार से पेश आ के जो वज्ह-ए-मलाल पूछ ली महशर-ए-शोर से जहाँ सर पर उठा दिया कि यूँ दिल को लगी है ठेस गर मुझ को बता दे माजरा क़तरा-ए-अश्क आँख से उस ने गिरा दिया कि यूँ पूछा हमारा हाल-ए-दिल जिस ने 'इराक़ी' प्यार से अपना कलाम एक बार पढ़ के सुना दिया कि यूँ