ग़ैरों में हिना वो मल रहा है नैरंग-ए-जहाँ बदल रहा है खटका है ये नश्तर-ए-मिज़्गाँ का रग रग से जो दम निकल रहा है वस्फ़-ए-लब-ए-सुर्ख़ लिख रहा हूँ याक़ूत क़लम उगल रहा है आबादी-ए-दिल है दाग़-ए-सोजाँ इस घर में चराग़ जल रहा है है दिल की तड़प से चश्म-ए-पुर-नम पारे का कुआँ उबल रहा है दिल ग़म से न किस तरह हो ठंडा पंखा दम-ए-सर्द झल रहा है बेताब है दिल ये ग़म के हाथों गेंदे की तरह उछल रहा है शबनम से जोश-ए-मय-कशी है हर साग़र-ए-गुल खंगल रहा है दिल आतिश-ए-ग़म से ताओ खा कर राँगे की तरह पिघल रहा है है चश्म-ए-सियह में कूदक-ए-अश्क भँवरे में ये तिफ़्ल पल रहा है मनका है ढला लवें फिरी हैं आ जल्द कि दम निकल रहा है बे-बर्ग-ओ-समर हैं इक हमीं 'शाद' हर एक निहाल फल रहा है