ग़ज़ल-गोई के फ़न का यूँ कभी इज़हार होता है मोहब्बत दिल से होती है नज़र से प्यार होता है तसादुम दो निगाहों का भी क्या क्या गुल खिलाता है समीम-ए-क़ल्ब से फिर इश्क़ का इक़रार होता है मोहब्बत करने वालों का हसीन अंजाम क्या जानो शगुफ़्ता फूल खिलते हैं गुल-ए-गुलज़ार होता है वो जिस से प्यार करता है उसी की चाह में हर-दम मरीज़-ए-इश्क़ बन बन कर सदा बीमार होता है ज़माने की जफ़ाओं का कोई शिकवा नहीं हरगिज़ वो मक़्तल में सजाता है जो ख़ुद दिलदार होता है धड़कते दिल से इक दूजे की बाँहों में समा जाता कहो ऐ 'शाद' यही अंजाम आख़िर होता है