गल को शर्मिंदा कर ऐ शोख़ गुलिस्तान में आ लब सीं ग़ुंचे का जिगर ख़ूँ करो मुस्क्यान में आ वही इक जल्वा-नुमा जग में है दूजा कोई नहीं देख वाजिब कूँ सदा मजमा-ए-इम्कान में आ ज़िंदगी मुझ दिल-ए-मुर्दा की तौहीं है मत जा दिल से गर ख़ुश नहीं ऐ शोख़ मिरी जान में आ गुल दिल-ए-ग़ुंचा नमन तंग हो रंग-ओ-बू सीं जब करे याद तिरे लब के तईं ध्यान में आ गर तू मुश्ताक़ है दिलबर सफ़र-ए-दरिया का आ के कर मौज मिरे दीदा-ए-गिरयान में आ मत मिला कर तू रक़ीबाँ सीं सभी पाजी हैं देख कर क़द्र आपस का ऐ सनम शान में आ यूँ मिरा दिल तिरे कूचे का बला-गर्दां है ज्यूँ कबूतर उड़े है छतरी के गर्दान में आ गर करो क़त्ल मिरे दिल कूँ तग़ाफ़ुल सीं जान फिर के दावा न करूँ हश्र के मैदान में आ दिल-ए-'यकरू' है तिरा पाए बंधिया काकुल का याद रख उस कूँ सदा मत कभू निस्यान में आ