गुलशन-ब-दोश नज़रें लब पर हसीं तराना हर इक अदा है उन की उल्फ़त का इक फ़साना दीवाना-साज़ गेसू अंदाज़-ए-वालिहाना ईमान लूटता है ये रंग-ए-काफ़िराना महके हुए लबों पर बहका सा ये तबस्सुम फूलों से ढल रहा हो जैसे शराब-ख़ाना अब तक निगाह में है पहली निगाह उन की हँसती रही मोहब्बत लुटता रहा ज़माना तारों की बज़्म हो वो या हो गुलों की महफ़िल हर एक अंजुमन है उन का ही जल्वा-ख़ाना उन की नज़र पनाहें ख़ुद दिल में ले रही है बिजली के साए में है अब मेरा आशियाना क्या हो बयाँ किसी से तफ़्सीर-ए-हुस्न-ओ-उलफ़त शो'लों की इक कहानी शबनम का इक फ़साना दुनिया-ए-रंग-ओ-बू में ये इंक़लाब-ए-रंगीं फूलों की हैं जबीनें काँटों का आस्ताना मुझ को 'शिफ़ा' मिटाना आसाँ नहीं है कोई देखूँ ज़रा मुक़ाबिल आए मिरे ज़माना