इसी सबब नहीं खुलती मिरी ज़बाँ लोगो न सुन सकोगे कभी दिल की दास्ताँ लोगो वो कौन है जिसे दिल से लगा के प्यार करें शुऊ'र-ए-ज़ौक़-ए-मोहब्बत रहा कहाँ लोगो तुम्हारे रहबर-ए-मंज़िल क़रीब ही होंगे ज़रा तलाश करो अपने दरमियाँ लोगो अब अपने अपने नशेमन का है ख़ुदा-हाफ़िज़ चमक रही हैं ज़माने में बिजलियाँ लोगो चलो कि दश्त में काँटों से दिल को बहला लें मक़ाम-ए-अम्न नहीं सेहन-ए-गुलिस्ताँ लोगो हमेशा रहज़न-ओ-रहबर के फ़र्क़ को जानो वगर्ना कोशिश-ए-मंज़िल है राएगाँ लोगो मिरे जुनून-ए-मोहब्बत की दास्तानें हैं ये चंद चाक-ए-गरेबाँ की धज्जियाँ लोगो असीर-ए-दर्द गिरफ़्तार-ए-ग़म मगर फ़नकार तुम्हारे शहर में है 'ताज' नग़्मा-ख़्वाँ लोगो