ग़म-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ से ख़ुद को जो आज़ाद रखता है कोई मौसम भी हो दिल को हमेशा शाद रखता है कोई भी हाल हो शिकवे गिले करता है जो सब से कभी होंटों पे नाले और कभी फ़रियाद रखता है ज़रा सी चूक पर तन्क़ीद की क़ैंची चलाने को मिरे शे'रों पे नज़रें गाड़ के नक़्क़ाद रखता है किसी प्यासे को पानी से कभी महरूम मत करना ये ऐसा काम है जिस को फ़क़त जल्लाद करता है मयस्सर है सुकून-ए-दिल की दौलत उस को दुनिया में ख़ुदा की याद से जो अपना दिल आबाद रखता है लगा देते हैं बाज़ी जान की जो हक़-परस्ती में ज़माना ऐसे लोगों को हमेशा याद रखता है अभी जो संग-बारी हो रही है वक़्त के हाथों 'सईद' इस वास्ते अपना जिगर फ़ौलाद रखता है