ग़मों में हंस के बिताना है क्या किया जाए यही तो सब का फ़साना है क्या किया जाए उगे हैं जिन की हथेली में सैकड़ों काँटे उन्हीं से हाथ मिलाना है क्या किया जाए वो जिन का नाम भी लेने से होंट जलते हैं उन्हें अदब से बुलाना है क्या किया जाए हमारी प्यास को कुछ बूँद और समुंदर तक सुलगती रेत से जाना है क्या किया जाए जहाँ हवा कि मुकम्मल इजारा-दारी है वहीं चराग़ जलाना है क्या किया जाए नहीं किसी का मुख़ालिफ़ मैं आज भी लेकिन मिरे ख़िलाफ़ ज़माना है क्या किया जाए हज़ारों तंज़िया तीरों का आज-कल 'तश्ना' हमारा दिल ही निशाना है क्या किया जाए