किरदार कह रहे हैं कुछ अपनी ज़बान में कितनी कहानियाँ हैं इसी दास्तान में जब आज तक न बात मुकम्मल हुई कोई ये लोग बोलने लगे क्यूँ दरमियान में बरसों में कट रहा है यहाँ अरसा-ए-हयात सदियाँ गुज़र रही हैं कहीं एक आन में उस दिन के बा'द सोचना महदूद कर दिया ऐसा ख़याल एक दिन आया था ध्यान में होने की इंतिहा है वही आज तक 'मलाल' जो इब्तिदा में हो गया इस ख़ाक-दान में